मेरे बारे में

संजु लता.. संपादक .. पिछले 15 वर्षो से लेखन और पत्रकारिता के क्षेत्र में सक्रिय नारी के सशक्तिकरण और आधुनिक सोच पर शोध कार्य में सक्रिय

Sunday, October 24, 2010

नारी , NAARI " जिसने घुटन से अपनी आज़ादी ख़ुद अर्जित की " "The Indian Woman Has Arrived "

नारी , NAARI " जिसने घुटन से अपनी आज़ादी ख़ुद अर्जित की " "The Indian Woman Has Arrived "


यहाँ महिला की उपलब्धि भी हैं , महिला की कमजोरी भी और समाज के रुढ़िवादि संस्कारों का नारी पर असर कितना और क्यों ? यहाँ पर संवाद भी हैं समाज के दूसरे वर्गों से । संवाद सब वर्गों के लिये खुला हैं । कमेन्ट दे कर हमारी सोच को विस्तार भी दे और सही भी करे क्योकि हम वहीलिख रहे हैं जो हम को मिला हैं या बहुत ने भोगा हैं । किसी को लगता हैं हम ग़लत हैं तो हमे जरुर बताये कई बार प्रश्न किया जा रहा हैं कि अगर आप को अलग लाइन नहीं चाहिये तो अलग ब्लॉग क्यूँ ?? इसका उत्तर हैं कि " नारी " ब्लॉग एक कम्युनिटी ब्लॉग हैं जिस की सदस्या नारी हैं जो ब्लॉग लिखती हैं । ये केवल एक सम्मिलित प्रयास हैं अपनी बात को समाज तक पहुचाने का ।


दीपावली पर एक मुहीम चलाये - भेट स्वदेशी दे


दिवाली आ रही हैं और एक दूसरे के घर भेट भी ले जाई जाती हैं । मिठाई का प्रचलन कम हो रहा हैं और जिस प्रकार से मिठाई मे मिलावट आ रही हैं तो घर की बनी मिठाई ही एक मात्र आसरा हैं !!!!

आप से आग्रह हैं की हो सके इस दिवाली उन जगहों से समान ले जहाँ हमारे अपने लोगो की बनायी वस्तुए मिलती हैं । मै आज खादी ग्राम शिल्प से बहुत सा समान लाई । नैचुरल चीजों के फैशन को देखते हुए वहाँ तरह तरह के शैंपू , साबुन और सौन्दर्य प्रसाधन जो बहुत कम पैसे के हैं । एक नैचुरल साबुन की टिक्की महज ४० रुपए की हैं जो माल मे २०० रुपए की मिलती हैं क्युकी वो ईजिप्ट या ग्रीस से इंपोर्ट की होती हैं । गिफ्ट पेक भी मिल रहे हैं ।

महिला के लिये साड़ियाँ और सूट हैं जिनके दाम बहुत कम हैं और अब डिजाईन बहुत खुबसूरत हैं । पुरुषों के लिये कोटन की शर्ट केवल ३२५ र मात्र मे हैं और उस पर भी २० % का डिस्काउंट दे रहे हैं ।

अगर आप अपनी कोटेज इंडस्ट्री को बढावा दे तो यहाँ लोगो को कुछ काम ज्यादा मिलेगा । खरीदेगे तो आप हैं ही सो क्यूँ ना ऐसी जगह से खरीदे जहाँ अपने देश की वस्तु मिल रही हैं । इस रिसेशन के दौर मे अपने घर के लोगो को काम मिले यही ख्याल हैं मन मे इस पोस्ट को लिखते समय ।

आप जब भी प्रगति मैदान जाये और वहाँ सरस का पवेलियन देखे तो अन्दर जरुर जाये और कुछ जरुर ले । इस इंडस्ट्री को आप के प्रमोशन की जरुरत हैं । अगर ४० रुपए मे काम हो सकता हैं तो ४०० क्यूँ खर्च किये जाये ।

सरस और खादी , दोनों जगह स्कर्ट और टॉप भी बहुत ही बढिया मिल रहे हैं और आज की जनरेशन के लिये बहुत सुंदर हैं । कोई भी पहनावा बुरा नहीं होता । पहनावा बस आप पर जंचना चाहिये और आप को उसको पहन कर सुकून मिलना चाहिये । भाषा और पहनावा कोई भी हो पर मन मे अपने देश , अपने संस्कारो के प्रति आस्था होनी चाहिये और जहाँ तक सम्भव हो हर स्वदेशी वस्तु को ही खरीदना चाहिये ताकि अपने लोगो को काम मिले ।

देश मे अमन चैन रहे और हम अपने देश के लिये मरने के लिये तैयार रहे क्युकी देश से बड़ा कुछ नहीं होता ।

हर दिवाली एक दीपक ऐसा जलाए जिस मे अपने अंदर की हर बुराई की बाती बनाये और उसको जलाए । उस दिये मे तैल को अपनी कमजोरियां माने ताकि आप की बुराइयां और कमजोरियां दोनों स्वत ही ख़तम हो जाए

शुभ दीपावली
वंदे मातरम
जय हिंद



"अब चुप रहना कायरता मानी जाती है,
क्रोधित स्वर की शक्ति पहचानी जाती है।"


दहेज


दहेज़ हत्याओं पर अभी अंकुश नहीं लगा है और न ही लगेगा जब तक कि दहेज़ देने और लेने वाले इस समाज का हिस्सा बने रहेंगे. फिर जब देने वाले को अपनी बेटी से अधिक घर और प्रतिष्ठा अधिक प्यारी होती है और समाज में अपनी वाहवाही से उनका सीना चौड़ा हो जाता है तो फिर क्यों आंसूं बहायें? उसके ससुराल वाले बारात लाये थे उसमें बढ़िया बैंड और आतिशबाजी भी थी. साड़ी और जेवर भी ढेर सा लेकर आये थे कि लोग देख कर वाह वाह करने लगे.
आज उसको शादी के सात साल बाद बिल्कुल ही ख़त्म कर दिया गया.फिर मैके वालों को खबर दी कि आपकी बेटी ने फाँसी लगा ली. माँ बाप जब पहुंचे तो उसका शव जमीन पर पड़ा था. गले में रस्सी के निशान थे और उसका सारा शरीर नीला पड़ा हुआ था. उसके पिता ने रोते हुए बताया कि हमने अपनी सामर्थ्य के अनुसार शादी में खूब दहेज़ दिया था और तब ये लोग संतुष्ट भी थे लेकिन उसके बाद फिर उनकी मांगें बढ़ने लगी, जब तक रहा तो पूरा किया उसके बाद दो साल पहले बेटी माँ के घर पहुँच गयी कि वहाँ रही तो वे लोग जान से मार देंगे. उसके पास एक साल का बेटा भी था.रिश्तेदारों ने समझौता करा दिया और उन्होंने बेटी को वापस ससुराल भेज दिया. समाज में लोग अंगुली उठाने लगे थे. उसके बाद भी उसको सताया जाता रहा और आज उसकी हदें पार कर दीं. ३ साल का बेटा माँ को हिला हिला कर जगा रहा था और उसके नाना फूट फूट कर रो पड़े बेटा अब तेरी माँ कभी नहीं उठेगी.
दहेज़ के विवाद को समझौते या किसी तरह से खुद को बेच कर लड़के वालों की मांग पूरी करने की हमारी आदत ही हमारी बेटियों के हत्या का कारण बनता है. जहाँ बेटी सताई जाती है, वहाँ के लोगों की मानसिकता जानने की कोई और कसौटी चाहिए? अगर नहीं तो समझौतों की बुनियाद कब तक उसकी जिन्दगी बच सकती है? इनके मुँह खून लग जाता है वे हत्यारे पैसे से नहीं तो जान से ही शांत कर पाते हैं. ऐसे लोग विश्वसनीय कभी नहीं हो सकते हैं. इसमें मैं किसी और को दोष क्यों दूं? इसके लिए खुद माँ बाप ही जिम्मेदार है , जिन्होंने अपनी सामर्थ्य से अधिक दहेज़ माँगने वालों के घर में रिश्ता किया. उसे अपने पैरों पर खड़ा होने दीजिये. अब मूल्य और मान्यताएं बदल रहीं है. बेटी किसी पर बोझ नहीं है वह अपना खर्च खुद उठा सकती है. दुबारा उस घर में मत भेजिए कि उसके जीवन का ही अंत हो जाये.
सबसे पहले माँ बाप का यही तर्क होता है कि अगर बेटी की शादी नहीं हुई तो समाज उन्हें जीने नहीं देगा. आप किस समाज की बात कर रहे हैं. वह हमसे ही बना है न. आपकी बेटी मार दी गयी क्या समाज आपको आपकी बेटी वापस लाकर दे सकता है ? अगर नहीं तो हम उस समाज की परवाह क्यों करें? जब आपकी बेटी ससुराल में कष्ट भोग रही थी और रो रो कर अपनी दास्तान आपसे बताती थी तो क्या इस समाज ने आपसे कहा था कि उसको वापस मरने के लिए भेज दें.? बेटी हमारी है और उसका जीवन उसका अपना है - हमारा हक है कि हम उसको एक अच्छा जीवन दें, न कि दहेज़ के हवन कुण्ड में उसकी आहुति दे दें. बेटी अविवाहित रहेगी कोई बात नहीं, अपना जीवन तो जियेगी और फिर ऐसा नहीं कि सारे लोग दहेज़ लोलुप ही होते हैं . आप योग्य वर देखें चाहे वह आर्थिक रूप से सुदृढ़ न हो, अपने जीवन में सुख शांति से जी सके उसको स्वीकार कर लीजिये. बड़े घर के लालच में आकर अपनी बेटी न खोएं.
संकल्प करें की दहेज़ लोलुप परिवार में बेटी नहीं देंगे उसको सक्षम बना देंगे और उसको आहुति नहीं बनने देंगे.


 

नारी अर्थात शक्ति (अबला नहीं सबला )
                  पता नहीं कब और कैसे नारी को अबला कहा और  माना जाने लगा. वह भी उस देश में जहाँ  माँ दुर्गा की पूजा की जाती है. माँ दुर्गा - साक्षात् शक्ति का प्रतीक. असंख्य राक्षसों का संहार करने वाली माता दुर्गा सवारी भी करती हैं  तो शेर की जो अपने आप में बल और शक्ति की एक मिसाल है. शेर जंगल का राजा है .ऐसे बलशाली और साहसी प्राणी की सवारी कोई बलशाली  और अदम्य साहसी व्यक्ति ही कर सकता है. माँ दुर्गा एक नारी है और शेर की सवारी करती हैं, अत: नारी को अबला मानाने की धारणा ग़लत है.
               अपने बल ,बुद्धि और पराक्रम से माँ भगवती ने अनेकानेक दानवों का विनाश किया. अकेले ही विभिन्न  रूप धारण कर उन पर विजय प्राप्त की. यह उनका आत्मबल ही था, आत्म विश्वास ही था, जो निरंतर उनका सहायक बना.  नौ दिन तक लगातार महिषासुर से युद्ध करके उस पर जीत हासिल करने वाली, दृढ़ इछाशक्ति और आत्मबल से युक्त माता की बेटियां अबला कैसे हो सकती हैं ?  माँ के गुण तो बच्चे  में स्वभाव से  ही आ जाते हैं. पर कभी-कभी परिस्थितियाँ इन गुणों को उभरने नहीं देती. पर हमें यह भी नहीं भूलना चाहिए कि मन में दृढ़ इच्छा हो, स्वयं पर विश्वास हो तो हर काम संभव हो जाता है.
              अत: माँ दुर्गा की बेटियों  को , भारत की नारियों को  अब स्वयं को हीन और क्षीण नहीं मानना है. उन्हें यह जानना है कि वे भी माँ दुर्गा की, माँ काली की शक्तियों को स्वयं में धारण किये हुए हैं. आवश्यकता है तो  मात्र  इन शक्तियों को पुन: स्थापित करने की है . अपने आप को पहचानने की है.
 
 

1 comment:

  1. naari blog kaa link haen
    indianwomanhasarrived.blogspot.com

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